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गीता प्रेस, गोरखपुर >> श्रीमद्भगवद्गीता भाषा

श्रीमद्भगवद्गीता भाषा

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :141
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1164
आईएसबीएन :81-293-0304-3

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कल्याण की इच्छावाले मनुष्यों के लिए मोह का त्यागकर अतिशय श्रद्धा-भक्तिपूर्वक श्रीगीताजी का अध्ययन करें।

Shri Madbhagvatgeeta -A Hindi Book by Geetapres - श्रीमद्भगवद्गीता भाषा - गीताप्रेस

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

गीता-माहात्म्य

जो मनुष्य शुद्ध चित्त होकर प्रेम पूर्वक इस पवित्र गीताशास्त्र का पाठ करता है, वह भय और शोक आदि से रहित होकर विष्णु धाम को प्राप्त कर लेता है।।1।।

जो मनुष्य सदा गीता का पाठ करने वाला है तथा प्राणायाम में तत्पर रहता है, उसके इस जन्म में और पूर्व जन्म में किए हुए समस्त पाप निःसंदेह नष्ट हो जाते हैं।।2।।

जल में प्रतिदिन किया हुआ स्नान मनुष्यों के केवल शारीरिक मल का नाश करता है, परन्तु गीता ज्ञानरूप जल में एक बार भी किया हुआ स्नान संसार मल को नष्ट करने वाला है।।3।।

जो साक्षात् कमलनाभ भगवान् विष्णु के मुख कमल से प्रकट हुई है, उस गीता का ही भलीभाँति गान (अर्थसहित स्वाध्याय) करना चाहिए, अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या प्रयोजन है ? ।।4।।

जो महाभारत का अमृतोपम सार है तथा जो भगवान श्री कृष्ण के मुख से प्रकट हुआ है, उस गीतारूपी गंगाजल को पी लेने पर पुनः इस संसार में जन्म नहीं लेना पड़ता।।5।।

सम्पूर्ण उपनिषदें गौ के समान हैं, गोपाल नंदन श्रीकृष्ण दुहने वाले हैं, अर्जुन बछड़ा है तथा महान गीतामृत ही उस गौ का दुग्ध है और शुद्ध बुद्धि वाला श्रेष्ठ मनुष्य ही उसका भोक्ता है।।6।।

देवकीनन्दन भगवान्श्रीकृष्ण का कहा हुआ गीताशास्त्र ही एकमात्र उत्तम शास्त्र है, भगवान देवकी नन्दन ही एक मात्र महान देवता हैं, उनके नाम ही एक मात्र मन्त्र हैं और उन भगवान की सेवा ही एकमात्र कर्तव्य कर्म है।।7।।







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